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सीबीगंज (बरेली)
दिपावली के महावर्व के पांचवे दिन मनाये जाने वाले इस त्यौहार के दिन को भाई बहनों के बीच अटूट प्रेम और समर्पण का प्रतीक माना जाता है ये त्यौहार हिंदी महीने के कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। हिन्दू धर्म के इस पर्व को ‘यम द्वितीया’ भी कहते हैं, भैय्या दूज या भाई दूज के दिन बहन रोली और अक्षत से अपने भाई का तिलक कर उसके उज्ज्वल भविष्य और लंबी आयु के लिए कामना करती हैं, वहीं भाई अपनी बहनों को तोहफ़ा देते हैं।

भारत में हर त्यौहार के साथ कोई न कोई लोकमान्यतायें और कथाएं जुड़ी है, जिसमें सूर्य पुत्र यम (यमराज) अपनी बहन यमी (यमुना नदी) से कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मिलने पहुंचते हैं, इस दौरान यमी अपने भाई की ख़ूब सेवा सत्कार करती है, बहन के इस सत्कार से यमराज बहुत प्रसन्न होते हैं और अपनी बहन यमी से मनचाहा वरदान मांगने को कहते हैं, जिसपर यमी कहती हैं कि जो भी प्राणी यमुना नदी के जल में स्नान करे वो यमपुरी न जाए, मुझे ऐसा बरदान दो। यमी के बरदान को सुनकर यमराज चिंतित हो जाते हैं, जिस से यमी भी परेशान हो जातीं हैं। और कहतीं है भैया अगर आप इस वरदान को देने में सक्षम नहीं हैं तो ये ही वरदान दे दीजिए कि आज के दिन जो कोई भी भाई अपनी बहन के घर भोजन करे और मथुरा के विश्राम घाट पर यमुना के जल में स्नान करे, उस व्यक्ति को ‘यमलोक’ नहीं जाना पड़ेगा, जिस पर यमराज अपनी बहन यमी को ये वरदान आर्शिवाद के रूप में दे देते हैं।
इस पौराणिक कथा के अनुसार ही आज भी परम्परागत तौर पर भाईदूज के दिन भाई अपनी बहन के घर जाकर उसके हाथों से बना भोजन खाते हैं जिससे भाई की आयु बढ़े और यमलोक न जाना पड़े, इसके साथ ही अपने प्रेम व स्नेह को प्रकट करते हुए बहन को आशीर्वाद देते हैं और उन्हें वस्त्र, आभूषण एवं अन्य उपहार देकर प्रसन्न करते हैं।