बरेली - आज का दिन इतिहास में दो महान राष्ट्र विभूतियों के पुण्यतिथि के तौर पर दर्ज है।1936 में हिंदी कथा-साहित्य को तिलस्मी कहानियों के झुरमुट से निकालकर जीवन के यथार्थ की ओर मोड़कर ले जाने वाले कथाकार मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु आज ही के दिन हो गई थी। तो 1979 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। मुंशी प्रेमचंद जी न सिर्फ भारत, बल्कि दुनियाभर के मशहूर और सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले रचनाकारों में से एक हैं। प्रेमचंद की कहानियों के किरदार आम आदमी होते थे। उनकी कहानियों में आम आदमी की समस्याओं और जीवन के उतार-चढ़ाव को दिखाया गया है। तो दूसरी ओर आजाद भारत में अगर लोगों को उद्वेलित करने की क्षमता किसी में थी, तो वह लोकनायक जय प्रकाश नारायण (जेपी) थे। 1940 के बाद से जीवन के अंत तक अलग-अलग मौकों, आंदोलनों व मुहिम में जेपी केंद्रीय भूमिका में रहे। महत्मा गांधी अगस्त कांति के नेता थे ही, लेकिन जब सब कुछ शांत सा लगता था, उस समय जेपी ने एक चिंगारी जलायी थी और देश में नया माहौल बनाया था। 1970 के बाद जनता में सत्ता के प्रति जो विक्षोभ पैदा हुआ, तो फिर जेपी आगे आये और छात्र आंदोलन का नेतृत्व किया। देश और देश की जनता के उत्थान के लिए समर्पित जेपी ने हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों को मान दिया. आजादी के बाद वे बड़े पद हासिल कर सकते थे, पर उन्होंने गांधीवादी आदर्शों के अनुरूप जीना चुना. लेकिन जब उन्हें लगा कि सत्ता निरंकुशता और भ्रष्टाचार से ग्रस्त हो रही है, तो वे फिर कूद पड़े थे संघर्ष के मैदान में. ये जेपी की क्रांतिकारी छवि का प्रभाव ही था जो उनके व्यक्तित्व पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने यह कविता रच दी.
“कहते हैं उसको जयप्रकाश जो नहीं मरण से डरता है
ज्वाला को बुझते देख, कुंड में स्वयं कूद जो पड़ता है.
है जयप्रकाश वह जो न कभी सीमित रह सकता घेरे में
अपनी मशाल जो जला बांटता फिरता ज्योति अंधेरे में.”
लोकनायक जयप्रकाश नारायण और कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी की पुण्यतिथि पर शत् शत् नमन।
जगदीश चन्द्र सक्सेना प्रदेशाध्यक्ष बेसिक शिक्षा समिति उत्तर प्रदेश व उपाध्यक्ष कायस्थ चित्रगुप्त महासभा उत्तर प्रदेश।